Tuesday, October 18, 2016

तेरा मजहब कौनसा

मस्जिद पे गिरता है, मंदिर पे भी बरसता है..
ए बादल तेरा मजहब कौनसा है........

इमाम की तू प्यास बुझाए, पुजारी की भी तृष्णा मिटाए..
ए पानी तेरा मजहब कौनसा है........

मज़ारो की शान बढाता है, मुर्तीयों को भी सजाता है..
ए फूल तेरा मजहब कौनसा है........

सारे जहाँ को रोशन करता है, सृष्टी को उजाला देता है..
ए सुरज तेरा मजहब कौनसा है.........

मुस्लिम तूझ पे कब्र बनाता है, हिंदू आखिर तूझ में ही विलीन होता है..
ए मिट्टी तेरा मजहब कौनसा है......

खुदा तू है, ईश्वर भी तू
पर आज बता ही दे, ए परवरदिगार.. तेरा मजहब कौनसा है.........

No comments:

Post a Comment