मस्जिद पे गिरता है, मंदिर पे भी बरसता है..
ए बादल तेरा मजहब कौनसा है........
इमाम की तू प्यास बुझाए, पुजारी की भी तृष्णा मिटाए..
ए पानी तेरा मजहब कौनसा है........
मज़ारो की शान बढाता है, मुर्तीयों को भी सजाता है..
ए फूल तेरा मजहब कौनसा है........
सारे जहाँ को रोशन करता है, सृष्टी को उजाला देता है..
ए सुरज तेरा मजहब कौनसा है.........
मुस्लिम तूझ पे कब्र बनाता है, हिंदू आखिर तूझ में ही विलीन होता है..
ए मिट्टी तेरा मजहब कौनसा है......
खुदा तू है, ईश्वर भी तू
पर आज बता ही दे, ए परवरदिगार.. तेरा मजहब कौनसा है.........
ए बादल तेरा मजहब कौनसा है........
इमाम की तू प्यास बुझाए, पुजारी की भी तृष्णा मिटाए..
ए पानी तेरा मजहब कौनसा है........
मज़ारो की शान बढाता है, मुर्तीयों को भी सजाता है..
ए फूल तेरा मजहब कौनसा है........
सारे जहाँ को रोशन करता है, सृष्टी को उजाला देता है..
ए सुरज तेरा मजहब कौनसा है.........
मुस्लिम तूझ पे कब्र बनाता है, हिंदू आखिर तूझ में ही विलीन होता है..
ए मिट्टी तेरा मजहब कौनसा है......
खुदा तू है, ईश्वर भी तू
पर आज बता ही दे, ए परवरदिगार.. तेरा मजहब कौनसा है.........
No comments:
Post a Comment